परिचय
भारत में वक्फ संपत्तियों का प्रबंधन एक संवेदनशील विषय रहा है। वक्फ इस्लामिक परंपरा का हिस्सा है, जिसमें कोई व्यक्ति अपनी संपत्ति को धार्मिक या चैरिटेबल उद्देश्यों के लिए स्थायी रूप से समर्पित करता है। वक्फ अधिनियम, 1995 के तहत इसकी व्यवस्था वक्फ अधिनियम, 1995 के तहत होती है। लेकिन हाल ही में, सरकार ने वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 पेश किया, जिसने देशभर में बहस छेड़ दी है। आइए समझते हैं कि यह विधेयक क्या है, इसमें क्या बदलाव किए गए हैं, और इसका विरोध क्यों हो रहा है
वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 क्या है?
8 अगस्त, 2024 को लोकसभा में पेश इस विधेयक का उद्देश्य वक्फ अधिनियम, 1995 में बदलाव करना है। इसे “यूनाइटेड वक्फ मैनेजमेंट, एम्पावरमेंट, एफिशिएंसी एंड डेवलपमेंट एक्ट, 1995” (UWMEEDA 1995) नाम देने का प्रस्ताव है।
सरकार का कहना है कि यह विधेयक पारदर्शिता, दक्षता और जवाबदेही बढ़ाएगा। इसके मुख्य बिंदु इस प्रकार हैं:
1. वक्फ बनाने की शर्तें
अब केवल वही व्यक्ति वक्फ बना सकता है, जो कम से कम 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहा हो और संपत्ति का मालिक हो।
“वक्फ बाय यूजर” (किसी संपत्ति को लंबे समय से धार्मिक उपयोग में लेने से उसे वक्फ घोषित करना) को हटाया जा रहा है।
महिला वारिसों को परिवार वक्फ (वक्फ-आल-आलाद) में अधिकार मिलेगा।
2. सर्वेक्षण और प्रबंधन
सर्वे कमिश्नर की जगह जिला कलेक्टर वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण करेगा।
अगर कोई सरकारी संपत्ति गलती से वक्फ के रूप में दर्ज है, तो उसे वक्फ नहीं माना जाएगा।
3. शासी निकायों में बदलाव
केंद्रीय वक्फ परिषद (Central Waqf Council) में 22 में से 12 सदस्य गैर-मुस्लिम हो सकते हैं।
राज्य वक्फ बोर्डों में भी गैर-मुस्लिम शामिल किए जा सकते हैं।
मुस्लिम महिलाओं, शिया-सुन्नी समुदायों और पिछड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व अनिवार्य होगा।
4. विवाद समाधान प्रक्रिया
वक्फ ट्रिब्यूनल में मुस्लिम कानून (शरिया) के विशेषज्ञ नहीं होंगे।
ट्रिब्यूनल के फैसलों को 90 दिनों के भीतर हाई कोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी।
वर्तमान स्थिति
मार्च 24, 2025 तक यह विधेयक संयुक्त संसदीय समिति (JPC) के पास विचाराधीन है। जनवरी 2025 में JPC ने अपनी रिपोर्ट दी थी, लेकिन विधेयक को अंतिम रूप से पारित नहीं किया गया है।
- भारत में वक्फ संपत्तियों के आंकड़े
8.7 लाख पंजीकृत वक्फ संपत्तियाँ हैं।
इनमें से 27% उत्तर प्रदेश, 9% पश्चिम बंगाल और पंजाब में हैं।
इनकी अनुमानित बाजार कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपये (सचर समिति, 2006) है।
7% संपत्तियों पर अतिक्रमण है और 50% संपत्तियों की स्थिति अज्ञात है।
सबसे विवादास्पद मुद्दा: 12 गैर-मुस्लिम सदस्य
इस विधेयक में सबसे अधिक विरोध केंद्रीय वक्फ परिषद में 22 में से 12 गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति को लेकर हो रहा है।
- समर्थन में तर्क
✅ पारदर्शिता: गैर-मुस्लिम सदस्य निष्पक्षता लाएंगे और भ्रष्टाचार कम करेंगे।
✅ समावेशिता: वक्फ संपत्तियाँ समाज के व्यापक हित के लिए हैं, इसलिए सभी का प्रतिनिधित्व जरूरी है।
✅ कानूनी आधार: वक्फ बोर्ड सरकारी निकाय है, न कि पूरी तरह धार्मिक संस्था।
- विरोध में तर्क
❌ धार्मिक स्वायत्तता: वक्फ इस्लामिक परंपरा है, इसलिए गैर-मुस्लिम बहुमत संविधान के अनुच्छेद 26 (धार्मिक मामलों को स्वतंत्र रूप से प्रबंधित करने का अधिकार) का उल्लंघन कर सकता है।
❌ विशेषज्ञता की कमी: गैर-मुस्लिमों को शरिया कानून की जानकारी नहीं होगी, जिससे गलत फैसले हो सकते हैं।
❌ सामाजिक तनाव: मुस्लिम समुदाय इसे अपने अधिकारों पर हमला मान रहा है। JPC को 2.57 करोड़ विरोधी ईमेल भेजे गए।
सबसे बड़ी समस्या क्या है?
विधेयक का सबसे विवादास्पद हिस्सा 12 गैर-मुस्लिम सदस्य हैं। इससे वक्फ परिषद एक धार्मिक संस्था से ज्यादा सरकारी निकाय बन जाएगी। अगर यह संख्या कम (4-5 सदस्य) होती, तो शायद विरोध कम होता।
इसके अलावा, 5 साल की इस्लामिक पालन की शर्त, वक्फ बाय यूजर हटाना, और जिला कलेक्टर की भूमिका बढ़ाना भी विवादित बिंदु हैं।
सकारात्मक पहलू
✔ महिला वारिसों को अधिकार देना लैंगिक समानता की दिशा में अच्छा कदम है।
✔ अतिक्रमण रोकने और बेहतर प्रबंधन के प्रयास सराहनीय हैं।
नकारात्मक पहलू
1. धार्मिक स्वायत्तता पर हमला
वक्फ इस्लामिक परंपरा का हिस्सा है, और इसके प्रबंधन में गैर-मुस्लिमों को बहुमत देना संविधान के अनुच्छेद 26 का उल्लंघन माना जा रहा है। यह अनुच्छेद धार्मिक समुदायों को अपने धार्मिक मामलों को स्वतंत्र रूप से संचालित करने का अधिकार देता है।
आलोचकों का कहना है कि केंद्रीय वक्फ परिषद में 12 गैर-मुस्लिम सदस्यों का प्रस्ताव वक्फ की मूल भावना को कमजोर करेगा और सरकार के धार्मिक मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप को बढ़ाएगा।
2. विशेषज्ञता की कमी
वक्फ इस्लामिक कानून (शरिया) पर आधारित है। लेकिन इस विधेयक में ट्रिब्यूनल से मुस्लिम कानून के विशेषज्ञों को हटाने का प्रावधान किया गया है।
इससे फैसलों में इस्लामिक सिद्धांतों की समझ का अभाव रहेगा।
“वक्फ बाय यूजर” जैसे जटिल मामलों को गैर-मुस्लिम सदस्य सही से नहीं समझ पाएंगे, जिससे गलत फैसले हो सकते हैं।
3. “वक्फ बाय यूजर” को हटाना
“वक्फ बाय यूजर” का नियम उन संपत्तियों को वक्फ के रूप में मान्यता देता था, जो लंबे समय से धार्मिक या चैरिटेबल कार्यों के लिए उपयोग की जा रही थीं।
इस प्रावधान को हटाने से ऐसी कई ऐतिहासिक वक्फ संपत्तियाँ अपनी स्थिति खो सकती हैं।
इससे मुस्लिम समुदाय को बड़ा नुकसान हो सकता है, क्योंकि पुरानी धार्मिक संपत्तियों का दर्जा खत्म हो जाएगा।
4. 5 साल की शर्त का मनमाना नियम
इस विधेयक में वक्फ बनाने के लिए यह शर्त रखी गई है कि व्यक्ति को कम से कम 5 साल से इस्लाम का पालन कर रहा होना चाहिए।
यह संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का उल्लंघन माना जा रहा है।
यह एक मनमाना नियम लगता है, जो किसी की धार्मिक स्वतंत्रता को सीमित कर सकता है।
पहले से इस्लाम मानने वालों को प्राथमिकता देना संवैधानिक भेदभाव माना जा सकता है।
5. जिला कलेक्टर की भूमिका और सरकारी हस्तक्षेप
पहले वक्फ संपत्तियों का सर्वेक्षण सर्वे कमिश्नर करता था, लेकिन नए विधेयक में यह जिम्मेदारी जिला कलेक्टर को दी गई है।
इससे सरकारी हस्तक्षेप बढ़ सकता है।
वक्फ बोर्ड की स्वायत्तता कमजोर होगी और सरकार के नियंत्रण में आ सकता है।
कुछ लोगों को डर है कि इससे वक्फ संपत्तियों को सरकारी संपत्ति घोषित करने की प्रक्रिया आसान हो जाएगी।
6. सामाजिक तनाव और विरोध
इस विधेयक को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं।
2.57 करोड़ ईमेल संयुक्त संसदीय समिति (JPC) को विरोध में भेजे गए हैं।
मुस्लिम संगठन, जैसे AIMIM और ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, इसे “असंवैधानिक” और “अल्पसंख्यक विरोधी” बता रहे हैं।
अगर सरकार ने विरोध को नजरअंदाज किया, तो सामाजिक तनाव और बढ़ सकता है।
7. कानूनी जटिलताएँ बढ़ सकती हैं
ट्रिब्यूनल के फैसलों को हाई कोर्ट में चुनौती देने का प्रावधान विवादों को जल्द सुलझाने में बाधा डाल सकता है।
इससे मुकदमों की संख्या बढ़ेगी, जिससे कानूनी प्रक्रिया लंबी और महंगी हो जाएगी।
8. संतुलन की कमी
12 गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति वक्फ परिषद को एक धार्मिक संस्था से ज्यादा सरकारी निकाय बना देती है।
अगर यह संख्या 4-5 होती, तो शायद विरोध कम होता।
मुस्लिम समुदाय का कहना है कि इससे उनका नियंत्रण कम होगा और धार्मिक स्वायत्तता पर असर पड़ेगा।
9. संभावित राजनीतिक दुरुपयोग
यह स्पष्ट नहीं है कि गैर-मुस्लिम सदस्य कैसे चुने जाएंगे।
अगर ये नियुक्तियाँ राजनीतिक आधार पर हुईं, तो यह वक्फ बोर्ड को राजनीति का अड्डा बना सकता है।
10. संपत्तियों के दुरुपयोग का खतरा
सरकारी संपत्तियों को वक्फ से हटाने का प्रावधान सही हो सकता है, लेकिन इसका गलत इस्तेमाल भी हो सकता है।
कई ऐसी संपत्तियाँ जो वास्तव में वक्फ की हैं, उन्हें सरकारी घोषित करके हटाया जा सकता है।
वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 कई विवादास्पद बदलाव लेकर आया है।
धार्मिक स्वायत्तता का हनन,
गैर-मुस्लिमों को बहुमत देना,
“वक्फ बाय यूजर” को हटाना,
जिला कलेक्टर की भूमिका बढ़ाना,
5 साल की धार्मिक शर्त,
वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2024 एक बड़ा बदलाव लाने वाला विधेयक है। इसमें पारदर्शिता और सुधार लाने की कोशिश की गई है, लेकिन साथ ही यह धार्मिक स्वायत्तता और संतुलन पर सवाल उठाता है।
12 गैर-मुस्लिम सदस्यों का मुद्दा सबसे अधिक विवादास्पद है, और सरकार को इस पर दोबारा विचार करना चाहिए। यह विधेयक भारत में वक्फ प्रशासन के भविष्य को प्रभावित करेगा और इसका असर प्रबंधन की दक्षता और धार्मिक अधिकारों के संतुलन पर निर्भर करेगा।